Chaitra Navratri Day 3: मां चंद्रघंटा की पूजा, पढ़ें कथा, आरती और करें मंत्रों का जाप!

Chaitra Navratri Day 3: मां चंद्रघंटा की पूजा, पढ़ें कथा, आरती और करें मंत्रों का जाप!

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Chaitra Navratri Day 3: मां चंद्रघंटा की पूजा, पढ़ें कथा, आरती और करें मंत्रों का जाप!

चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिस व्यक्ति की कुंडली में मंगल दोष होतात है उसे नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा का विधि-विधान से पूजन अवश्य करना चाहिए।

Chaitra Navratri Day 3: चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन मां दुर्गा के साहसी और पराक्रमी स्वरूप मां चंद्रघंटा को समर्पित है। मां चंद्रघंटा का पूजन करने से व्यक्ति को स्वंय पराक्रमी और साहसी बनने का आशीर्वाद प्राप्त होता है। धर्म शास्त्रों में मां चंद्रघंटा के स्वरूप का जो वर्णन किया गया है उसके ​अनुसार मां के माथे पर घंटे के आकार पर अर्धचंद्र बना हुआ है. माता के हाथ में त्रिशूल, तलवार और गदा विराजमान है, जिसके जरिए मां चंद्रघंटा अपने भक्तों के सभी दुखों को दूर करती हैं। अगर आप भी माता रानी का आशीर्वाद पाना चाहते हैं तो नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा का विधि-विधान से पूजन करें और कुछ मंत्रों का जाप करें। यहां पढ़ें मां चंद्रघंटा की उत्पत्ति से जुड़ी कहानी।

मां चंद्रघंटा की कहानी

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार देवताओं और असुरो के बीच लंबे समय तक घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध के दौरान असुरों का राजा महिषासुर था और देवताओं का नेतृत्व इंद्रदेव कर रहे थे। लेकिन युद्ध में असुरो के राजा महिषासुर ने इंद्रदेव का सिंहासन छीन लिया और उस पर स्वंय विराजमान हो गया। महिषासुर ने इंद्र, सूर्य, चंद्र और वायु समेत सभी देवताओं से देवलोक से जुड़े उनके सभी अधिकार भी छीन लिए। जिसके बाद सभी देवता परेशान होकर धरती लोक पर आ गए।

देवताओं ने अपने दुख ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने व्यक्त किया, जिसके बाद तीनों देवता बेहद ही क्रोधित हुए। तीनों देवों के क्रोध के कारण उनके मुख से ऊर्जा उत्पन्न हुई और देवताओं के शरीर की ऊर्जा से मिल गई। फिर दसों दिशाओं में व्याप्त होने के बाद इस ऊर्जा से मां भगवती के चंद्राघंटा स्वरूप की उत्पत्ति हुई। भगवान विष्णु ने मां चंद्रघंटआ को उन्हें अपना त्रिशूल भेट किया। इसी त्रिशुल मां चंद्रघंटा ने युद्ध में महिषासुर का वध किया।

मां चंद्रघंटा के मंत्र

ऐं श्रीं शक्तयै नम:।
ओम देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥

आह्लादकरिनी चन्द्रभूषणा हस्ते पद्मधारिणी।
घण्टा शूल हलानी देवी दुष्ट भाव विनाशिनी।।

“या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमो नमः।।”

पिंडजप्रवरारूढा, चंडकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं, चंद्रघंटेति विश्रुता।।

मां चंद्रघंटा की आरती

जय माँ चन्द्रघंटा सुख धाम।
पूर्ण कीजो मेरे काम॥

चन्द्र समाज तू शीतल दाती।
चन्द्र तेज किरणों में समाती॥

क्रोध को शांत बनाने वाली।
मीठे बोल सिखाने वाली॥

मन की मालक मन भाती हो।
चंद्रघंटा तुम वर दाती हो॥

सुन्दर भाव को लाने वाली।
हर संकट में बचाने वाली॥

हर बुधवार को तुझे ध्याये।
श्रद्दा सहित तो विनय सुनाए॥

मूर्ति चन्द्र आकार बनाए।
शीश झुका कहे मन की बाता॥

पूर्ण आस करो जगत दाता।
कांचीपुर स्थान तुम्हारा॥

कर्नाटिका में मान तुम्हारा।
नाम तेरा रटू महारानी॥

भक्त की रक्षा करो भवानी।

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