Chaitra Navratri Day 4: मां कुष्मांडा की पूजा, पढ़ें कथा, आरती और करें मंत्रों का जाप।

Chaitra Navratri Day 4: मां कुष्मांडा की पूजा, पढ़ें कथा, आरती और करें मंत्रों का जाप।

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Chaitra Navratri Day 4: मां कुष्मांडा की पूजा, पढ़ें कथा, आरती और करें मंत्रों का जाप।

चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन: आज चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन माता कूष्मांडा की उपासना का विधान है। आइए पढ़ते हैं, मां कूष्मांडा की सिद्ध आरती।

Mata Kushmanda Puja, Chaitra Navratri Day 4: वैदिक पंचांग के अनुसार, आज चैत्र नवरात्रि पर्व का चौथा दिन है और आज के दिन मां भगवती के चौथे दिव्य स्वरूप माता कूष्मांडा की उपासना का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आज के दिन मां कूष्मांडा की उपासना करने से बल, बुद्धि, आयुष, आरोग्यता और यश की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में सभी प्रकार की सुख-समृद्धि आती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आज के दिन विधि-विधान से मां कूष्मांडा की उपासना की जानी चाहिए और पूजा के अंत में उनकी आरती के साथ ही पूजा को संपन्न करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि माना जाता है कि बिना आरती किए पूजा का फल प्राप्त नहीं होता है।

कैसा है मां कूष्मांडा का स्वरूप?

भगवती पुराण के अनुसार, मां कूष्मांडा की अष्टभुजाएं हैं और उनके मंद मुस्कान से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी। इसलिए इन्हें, कूष्मांडा के नाम से जाना जाता है। इनके हाथ में कमंडल, कमल, कलश, सुदर्शन चक्र, गदा, धनुष-बाण और अक्षमाला है और मां सिंह की सवारी करती हैं। मां कूष्मांडा के स्वरूप को शक्ति प्रदान करने वाला स्वरूप भी कहा जाता है। पूजा के समय मां कूष्मांडा को प्रसन्न करने के लिए ‘सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे।’ इस मंत्र का जब जरूर करना चाहिए।

आज के दिन जरूर करें माता कूष्मांडा की आरती

कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥

पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी माँ भोली भाली॥

लाखों नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे॥

भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥

सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥

तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥

माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥

तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा॥

मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥

तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥


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